OSHO PREM GEET

� *अपने गीत को उठने दे*

गीत गाना दिव्य है, दिव्यतम घटनाओं में से एक है। केवल नृत्य ही इससे ऊपर है। नृत्य के बाद गायन ही आता है। और नृत्य करना और गीत गाना दिव्य घटनायें क्यों है ? क्योंकि यही वे घटनायें हैं जिनमें आप पूरी तरह से खो सकते हैं। आप गायन में इतना डूब सकते हैं कि गायक खो जाए और क्षण रूपांतरण का, बदलाहट का क्षण होता है जब गायक नहीं बचता और केवल गीत ही रह जाता है।

जब आपका पूरा अस्तित्व एक गीत या एक नृत्य बन जाता है, तो वही प्रार्थना है। आप क्या गा रहे हैं, यह अप्रासंगिक है। चाहे वह कोई धार्मिक गीत न भी हो, लेकिन यदि आप उसे पूरे प्राणों से गा रहे हैं, तो वह पवित्र है। और इससे उलटा भी हो सकता है, सदियों से श्रद्धापूर्वक चला आ रहा कोई धार्मिक गीत भी यदि आप पूरे प्राणों से नहीं गा रहे हैं तो वह अपवित्र है।

गीत के बोलों का महत्व नहीं है, उसमें आप जो भाव लाते हैं समग्रता, प्रगाढता लाते हैं वही महत्वपूर्ण है किसी और का गीत मत दोहराएं, क्योंकि वह आपके ह्रदय से नहीं उठा है। और यह ढंग नहीं है उस दिव्य के चरणों में अपने ह्रदय को उंडेलने का। अपने गीत को उठने दें। छंद और व्याकरण को भूल जाएं। परमात्मा कोई बहुत बडा व्याकरण का जानकार नहीं है। और उसे इसकी चिंता नहीं है कि आप किन शब्दों का प्रयोग करते हैं। उसकी उत्सुकता आपके ह्रदय में है...........😍

🌹 _*ओशो*_   🌹

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'प्रेम'* की आकांक्षा ही तो तुम्हारी आत्मा है, तुम कितने ही जंगलो में चले जाओ, कितनी ही दूर और कितनी ही गुफाओं में बैठ जाओ, तुम्हारे भीतर *प्रेम* सुगबुगायेगा, तुम्हारे भीतर *प्रेम* का झरना फूटने की चेष्टा करता रहेगा, गुफा में बैठोगे तो गुफा से *प्रेम* हो जायेगा, किसी वृक्ष के नीचे बैठोगे तो उस वृक्ष से *प्रेम* हो जायेगा, कोई पक्षी तुम्हारे कंधे पर आकर बैठने लगेगा तो उस पक्षी से *प्रेम* हो जायेगा, अगर वह एक दिन न आएगा तो तुम प्रतीक्षा करोगे, वैसी ही प्रतीक्षा जैसे 'प्रेमी प्रेयसी की करता है' या 'प्रेयसी प्रेमी की करती है' *प्रेम* से कहाँ तक भागोगे? "तुम खुद ही *प्रेम* हो"................

_*ओशो*_

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