Osho

❤  *"हम वही बांट सकते हैं जो हम हैं।जो हम नहीं हैं,उसे हम चाहें तो भी नहीं बांट सकते"*

आनंदित होओ। आनंद बांटो।
और जो आनंदित है वही आनंद बांट सकता है,स्मरण रखो।
दुखी दुख ही बांट सकताहै।
हम वही बांट सकते हैं जो हम हैं।
जो हम नहीं हैं,
उसे हम चाहें तो भी नहीं बांट सकते।

इसलिए तो इस दुनिया में लोग
ऐसा नहीं है कि दूसरों को सुख नहीं देना चाहते।
कौन मां-बाप अपने बच्चों को दुख देना चाहता है!
कौन पति अपनी पत्नी को दुख देना चाहता है!
कौन पत्नी अपने पति को दुख देना चाहतीहै!
कौन बच्चे अपने मां-बाप को दुखदेना चाहते हैं!
नहीं; लेकिन तुम्हारी चाह का सवाल नहीं है।
दुख ही फलित होता है।

नीम लाख चाहे कि उसमें मीठे आम लगें
और कांटे लाख चाहें कि गुलाब के फूल हो जाएं,
चाहने से क्या होगा?
मात्र चाहने से कुछ भी न होगा।
तो तुम चाहते हो कि लोगों को आनंदित करो,
लेकिन कर तुम पाते हो केवल दुखी।
चाहते तो हो कि पृथ्वी स्वर्ग बन जाए,
लेकिन बनती जाती है रोज-रोज नरक।

इसलिए मैं तुमसे कहना चाहता हूं,
यह मेरा संदेश है:
इसके पहले कि तुम किसी और को आनंद देने जाओ,
तुम्हें अपने भीतर आनंद की बांसुरी बजानी पड़ेगी,
आनंद का झरना तुम्हारे भीतर पहले फूटना चाहिए।
मैं तुम्हें स्वार्थी बनाना चाहता हूं।

यह स्वार्थ शब्द बड़ा प्यारा है।
गंदा हो गया।
गलत अर्थ लोगों ने दे दिए।

स्वार्थ का अर्थ होता है:
स्वयं का अर्थ।
अपने भीतर के अर्थको जो जान ले,
स्व के बोध को जो जानले,
वही स्वार्थी है।

मैं तुमसे कहता हूं:
स्वार्थी बनो,
क्योंकि तुम्हारे स्वार्थी बनने में ही परार्थ की संभावना है।
तुम अगर स्वार्थी हो जाओ पूरे-पूरे
और तुम्हारे भीतर अर्थ के फूल खिलें,
आनंद की ज्योति जले,
रस का सागर उमड़े,
तो तुमसे परार्थ होगा ही होगा।

इसलिए मैं सेवा नहीं सिखाता,
स्वार्थ सिखाता हूं।
मैं नहीं कहता कि किसी और की सेवा करो।
तुम कर भी न सकोगे।
तुम करोगे तो भी गलती हो जाएगी।
तुम करने जाओगे सेवा और कुछ हानि करके लौट आओगे।
तुम करना चाहोगे सृजन और तुमसे विध्वंस होगा।
तुम ही गलत हो तो तुम जो करोगे वह गलत होगा।

इसलिए मैं तुम्हारे कृत्यों पर बहुत जोर नहीं देता।
मेरा जोर है तुम पर।
तुम क्या करते हो, यह गौण है;
तुम क्या हो, यही महत्वपूर्ण है।

आनंदित होओ।
और आनंदित होने का एकही उपाय है,
मात्र एक ही उपाय है, कभी दूसरा उपाय नहीं रहा,
आज भी नहीं है, आगे भी कभी नहीं होगा।
ध्यान के अतिरिक्त आनंदित होने का कोई उपाय नहीं है।
धन से कोई आनंदित नहीं होता;
हां, ध्यानी के हाथ में धन हो तो धन से भी आनंद झरेगा।
महलों से कोई आनंदित नहीं होता;
लेकिन ध्यानी अगर महल में हो तो आनंद झरेगा।
ध्यानी अगर झोपड़ी में हो तो भी महल हो जाता है।
ध्यानी अगर नरक में हो तो भी स्वर्ग में ही होता है।
ध्यानी कोनरक में भेजने का कोई उपाय ही नहीं है।
वह जहां है वहीं स्वर्ग है,
क्योंकि उसके भीतर से प्रतिपलस्वर्ग आविर्भूत,
उसके भीतर से प्रतिपल स्वर्ग की किरणें चारों तरफ झर रही हैं।
जैसे वृक्षों मेंफूल लगते हैं,
ऐसे ध्यानी में स्वर्ग लगता है।

मेरा संदेश है: ध्यान में डूबो।
और ध्यान को कोई गंभीर कृत्य मत समझना।
ध्यान को गंभीर समझने से बड़ी भूल हो गई है।
ध्यान को हलका-फुलका समझो।
खेल-खेल में लो।

हंसिबा खेलिबा करिबा ध्यानम्।
गोरखनाथ का यह वचन याद रखना:
हंसो,खेलो और ध्यान करो।

हंसते खेलते ध्यान करो।
उदास चेहरा बना कर,
अकड़ कर,
गुरु-गंभीर होकर धार्मिकहोकर,
मत बैठ जाना।
इस तरह के मुर्दों से पृथ्वी भरी है।
वैसे ही लोग बहुत उदास हैं,
और तुम और उदासीन होकर बैठ गए।
क्षमा करो।
लोग वैसे ही बहुत दीनऱ्हीन हैं,
अब और उदासीनों को
यह पृथ्वी नहीं सह सकती।
अब पृथ्वी को नाचते हुए,
गाते हुए ध्यानी चाहिए।

आह्लादित!
एक ऐसा धर्म चाहिए पृथ्वी को,
जिसका मूल स्वर आनंद हो;
जिसका मूल स्वर उत्सव हो.....💃�

🌷 _*ओशो*_  🌷

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