OSHO PYASH HI PARMATMA

*परमात्मा उन्हें मिलता है जो संतुष्ट हैंचाह को समझो। चाह का अर्थ क्या है?*
चाह का अर्थ यह है कि तुम जैसे हो उससे संतुष्ट नहीं हो। तुम परमात्मा को क्यों चाहते हो? क्योंकि पत्नी से संतुष्ट नहीं हो, पति से संतुष्ट नहीं हो, बेटे से संतुष्ट नहीं हो, भाई से संतुष्ट नहीं हो। संसार से असंतुष्ट हो, इसलिए परमात्मा को चाहते हो। तुम्हारे परमात्मा की चाह के पीछे *सिर्फ तुम्हारा असंतोष छिपा है।* और वहीं भूल हो गयी। परमात्मा उन्हें मिलता है जो संतुष्ट हैं। परमात्मा उन्हें मिलता है जिनके जीवन में गहन परितोष है; जो ऐसे परितुष्ट हैं कि परमात्मा ने मिले तो भी चलेगा; तो इतने परितुष्ट हैं कि परमात्मा न मिले तो कोई अड़चन नहीं है। उनको परमात्मा मिलता है!
परमात्मा का नियम करीब-करीब वैसा है जैसा *बैंक का नियम* होता है। अगर तुम्हारे पास रुपए हैं, बैंक रुपए देने को राजी होता है। अगर तुम्हारे पास रुपए नहीं हैं, बैंक मुंह फेर लेता है--कि रास्ता लो, कहीं और जाओ। जिसकी राख है बाजार में, उसको बैंक रुपए देता है। उसको जरूरत नहीं है रुपए की, इसीलिए रुपए देते हैं। ये बड़े अजीब नियम हैं, मगर यही नियम हैं! जिसको रुपए की कोई जरूरत नहीं है, बैंक उनके पीछे घूमता है। बैंक के मैनेजर खुद आते हैं कि कुछ ले लें, फिर कुछ हमारी सेवा ले लें। और जिसको जरूरत है वह बैंकों के चक्कर लगाता है, उसे कोई देता नहीं।
*परमात्मा का नियम भी कुछ ऐसा ही है तुम अगर संतुष्ट हो, परमात्मा कहता है ले ही लो*, मुझे, आ जाने दो मुझे भीतर। तुम्हारे संतोष में अपना घर बनाना चाहता है।
संतोष में ही तुम मंदिर होते हो और मंदिर का देवता द्वार पर दस्तक देता है, कि आ जाने दो। अब तुम राजी हो गए। अब तुम मंदिर हो, अब मैं आ जाऊं और विराजमान हो जाऊं। सिंहासन बन चुका, अब खाली रखने की कोई जरूरत नहीं है।
लेकिन तुम हो असंतोष की लपटों से भरे हुए। मंदिर तो है ही नहीं; तुम एक चिता हो, जो धू-धूकर जल रही है। परमात्मा आए तो कहां आए?
तुम कहते हो: मैं परमात्मा को पाना चाहता हूं!
क्यों पाना चाहते हो? जरा कारणों में खोजो। अजीब-अजीब कारण हैं। किसी की पत्नी मर गयी, वे परमात्मा की तलाश में लग गए। किसी का दिवाला निकल गया, मुंड़ मुड़ाए भये संन्यासी! अब दिवाला ही निकल गया है तो अब करना भी क्या है दुकान पर रहकर! अब संन्यासी होने का ही मजा ले लो!
लोग जरा कारण तो देखें कि किसलिए परमात्मा को खोजने निकलते हैं! तुमने देखा जब तुम देख मग होते हो तब परमात्मा की याद करते हो। जब तुम सुख में होते हो, तब? बिलकुल भूल जाते हो।
और मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि सुख में पुकारो तो आए; दुख में पुकारो तो नहीं आएगा। क्योंकि दुख की पुकार ही झूठी है। दुख की पुकार सांत्वना के लिए है, सहारे के लिए है। *दुख की पुकार में तुम परमात्मा का शोषण कर लेना चाहते हो*, उसका उपयोग कर लेना चाहते हो, उसकी सेवा लेना चाहते हो। तब तुम सुख से भरो तब पुकारो।
मैं अपने संन्यासियों को कहना चाहता हूं: जब तुम आनंदित होओ तब प्रार्थना करो। दुख को क्या उसके द्वार पर ले जाना। द्वार-दरवाजे बंद करके दुख को रो लेना; क्या परमात्मा के चरणों में चढ़ाना! हां, जब आनंद उठे, मग्न भाव उठे, तो नाचना, तो पहन लेना पैरों में घूंघर, तो देना थाप मृदंग पर! उत्सव में उससे मिलन होगा, क्योंकि उत्सव में ही तुम अपनी पराकाष्ठा पर होते हो। उत्सव के क्षण में ही तुम्हारे भीतर के सारे द्वंद्व चले जाते हैं, तुम निद्वंद्व होते हो। उत्सव के क्षण में ही तुम्हारे भीतर दीया जलता है रोशनी होती है:
ओशो

Comments

Popular posts from this blog

Osho Prem

OSHO ALL AUDIO HINDI N ENGLISH

OSHO RAM RAS PIYA RE